The Dreamer's Walk !

” कुछ वो पल की समीक्षा ” Review of Kuch wo Pal

on 11/02/2017

” कुछ वो पल ” सुब्रत सौरभ जी की एक कविताओं और शायरियों की संग्रह कृति है।

इस पुस्तक के कवर पेज में पीछे दिए गए पुस्तक के विवरण तथा कवि के बारे में दी गयी जानकारी पढ़ने पर उत्सुकता जग गयी थी। किन्तु इस पुस्तक ने मुझे काफी निराश किया है। कवि का आदर करते हुए यहाँ कहना चाहूंगा की उनकी सोचने की शैली काफी अच्छी है परन्तु उन्हें अपने शब्दों, तुकबंदियों तथा कविता के रस को पाठकों तक सही या कहना चाहिए बेहतर तरीके से प्रस्तुत करने में थोड़ा और प्रयास करना चाहिए।

कविताओं में एक रस होता है , जो उन्हें एक साधारण विवरण, साधारण बातों, गद्य तथा कहानियों से अलग करती हैं. वो रस इनके हर पंक्तियों के विश्लेषण, तुकबंदी शैली जैसे भिन्न रूपों में झलकता है। मैं इस बात से इंकार नहीं करूँगा कि सुब्रत जी ने तुकबंदी का उपयोग नहीं किया या पंक्तियों के विश्लेषण सही तरीके से नहीं किया परन्तु ये जरूर कहना चाहूंगा कि कविताओं का प्राकृतिक रस नदारद था।

” हमें दर लगता है , दे साथ अगर मेरा तू, मैं बातें करता , जाने क्यों हम अपना शहर छोड़ आये हैं, तेरे झूठे दिलासे की जरुरत नहीं, मेरे बचपन की याद आती है ” इन कविताओं के अलावा किसी भी कविता ने मुझे प्रभावित नहीं किया सिर्फ निराशा ही हाथ लगी। ५० कविताओं के संग्रह में यदि सिर्फ ६ कविताओं से ही आप प्रभावित हो तो शायद अधिक मेहनत की जरुरत है। बाकी कविताओं को पढ़ने में कहीं तुकबंदी में कमियां नज़र आयी या कविता शैली मे। कई कविताओं को पढ़कर कविता की जगह किसी विवरण या गद्य या एक साधारण अनुभवों को पढ़ने का एहसास आया।

इनके अलावा एक और महत्वपूर्ण बात हैं जिसमें गौर करना चाहिए। कविताओं का शीर्षक, जिसके चयन में शायद कवि ने जल्दबाजी की होगी। अगर नहीं तो उन्हें इस क्षेत्र में थोड़ी और अनुभव लेने की आवश्यकता है। कविता से किसी एक पंक्ति को शीर्षक बनाना सही चयन नहीं होता। कविताओं का शीर्षक उनका सार होता है अथवा अगर किसी पंक्ति को शीर्षक के रूप में चयनित किया गया है तो वो पंक्ति उस कविता की मुख्य रस को प्रदर्शित/Denote करती है। उदहारण के तौर पर मेरे प्रेणास्त्रोत गुरु “स्वर्गीय श्री हरिवंश राय बच्चन जी ” की रचनाओं की बात करें तो कहीं उन्होंने “मधुशाला” जैसे शब्द को चयन किया जो उस कविता का रूपक अलंकार से समावेशित सार था तो वहीँ दूसरी ओर “है अँधेरी रात पर दिवा जलाना कब मना है ” की तर्ज़ पर कविता की उस पंक्ति को शीर्षक के रूप में चुना जिसमे कविता का मुख्य रस “सकारात्मक सोच ” झलकती है। उसी प्रकार हिंदी कविताओं के एक और महान कवी “स्वर्गीय श्री रामधारी सिंह दिनकर जी ” की कविताओं के शीर्षक “कलम आज उनकी जय बोल, परशुराम की प्रतीक्षा तथा हमारे कृषक ” भी इसी तरह चयनित हैं। ज्यादातर कविताओं के शीर्षक ऐसे प्रतीत हुए मानो वो शीर्षक के तौर पर इसलिए उपयोग किये गए क्योंकि या तो वो उस कविता की सबसे मजबूत पंक्ति थी या फिर वो दोहरायी गयी थी। आखिर में शीर्षक चयन कवि का ही निर्णय होता है और इसका कोई आधिकारिक नियम नहीं है परन्तु कविता या कहानी या एक फिल्म किसी भी रचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है शीर्षक, और इसके चयन को लेकर ये जरूर समझ लेना चाहिए की यदि शीर्षक पाठक के सामने सबसे पहले प्रस्तुत होती है और यदि इनका सही चयन नहीं होगा तो पाठक/दर्शक रचनाओं या उनके सार से विमुख हो जायेंगे अथवा उनकी रूचि हट जाएगी जो की बहुत सारी कविताओं में मुझे महसूस हुआ।

आशा है कि कवि श्री सुब्रत सौरभ मेरे समीक्षा को सकारात्मक लेकर जिन बातों को मैंने यहाँ कहा है उन विषयों पर विचार करेंगे।

फिलहाल इस पुस्तक की समीक्षा में इतना ही ….

Rating – 1.5/5

सप्रेम,
अभिषेक बन्सोड, “साहिल”

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